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COMICS HAI MERA JUNOON

मित्रों ! इस पेज पर हम कॉमिक्स फैन्स के उन विचारों को जानेंगे जो कॉमिक्स के प्रति उनमें भरे हैं यानि हम जानेंगे उनके बचपन से अब तक के कॉमिक्स के सफ़र की दास्तान उन्हीं की जुबानी !


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कॉमिक्स और मैं अब तक Sat, Nov 25, 2017 at 9:50 AM
महेश कुमार (टिंकू माही)


हम सब लोगों की ये सेम लाइन होगी कि हमने कॉमिक्स अपने बचपन में पढ़ना शुरू किया था तो हां ऐसा मेरे साथ भी है मुझे अपने पहली कॉमिक्स का नाम तो ठीक से याद नहीं पर । जो करैक्टर मैंने उस कॉमिक्स में पढ़ा था । उसे हम सब गोजो के नाम से जानते हैं।
मैं अपने दोस्त जितेन्द्र के घर गया था जितेन्द्र अपने घर के अन्दर वाले कमरे में मैथ्स की किताब पढ़ रहा था मैंने उसे पढ़ता देखा तो मैं चौंक गया मैंने बोला भाईसाहब आप कब से पढ़ने लगे तो जितेंन्द्र ने मुझे मैथ्स की किताब के अन्दर गोजो की वो कॉमिक्स दिखाई जो वो चोरी चुपे पढ़ रहा था। ऐसा शायद हम सब ने अपनी जिन्दगी में किया ही होगा। इस चीज का एक अलग ही मजा था हैं न - तो जितेंन्द्र ने कॉमिक्स मुझे पढ़ने को दी और बोला ठीक से पकड़ना कोई भी पन्ना खराब नहीं होना चाहिए। जैसे जैसे मैं कॉमिक्स को पढ़ता जा रहा था वैसे वैसे आकर्षक चित्रों और शानदार संवादों से मैं कॉमिक्स में खोता जा रहा था। मुझे आज भी याद है उस सीन में गोजो एक बैलगाड़ी को रोक रहा था। जिसके बैल बेकाबू होकर एक बच्चे की तरफ बढ़ रहे थे वो बच्चा घर से बाहर सड़क पर खेल रहा था। गोजो ने तुरन्त अपने शरीर को पत्थर का बना दिया -जिसको हम सब संहारक के नाम से जानते है- और उस बैलगाड़ी को रोकने की कोशिश करने लगा पर वो बेकाबू बैल गोजो समेत कई सारे घरों को तोड़ते हूए काफी दूर जा कर रूक पाये दीवारों पर सर लगने से बैलों पर किया गया जादू टूट गया , गोजो ने कॉमिक्स में कई और रूप भी बदले और फिर गोजो ने विलन को खूब पीटा इस तरह गोजो ने मुझे अपना दीवाना बना लिया। 
उस समय कॉमिक्स को मैं 1 रूपए में किराए पर लेकर पढ़ा करता था , मेरा दोस्त जितेंद्र , जो मेरी ही तरह कॉमिक्स को लाइक करता था।  वो ज्यादातर कॉमिक्स का इंतजाम करता और हम दोनों भाई आराम से बैठकर बारी बारी से कॉमिक्स पढ़ते। मुझे याद है कॉमिक्स पढ़ने को लेकर हम दोनों में लड़ाई भी हो जाती थी। गोजो के बाद मैंने जिस करैक्टर की कॉमिक्स को पढ़ा वो था - तौसी - 
उस करैक्टर को बहुत ही अच्छे से डिजाइन किया गया था उसकी शक्तियां भी मस्त थी । आप सब भी मेरी इस बात से सन्तुष्ट होंगे । हां तो तौसी जी नाग थे पाताल लोक के नाग राजा- हम सब ने उस समय नगीना और निगाहें फिल्म देखी ही होंगी तो मेरा लगाव सा हो गया था नागों से ये बात बता दू सभी नागों से नहीं अच्छे नागों से जो इन्सानों की मदद करते उनकी तरह बात करते सबको काटते नहीं फिरते थे। तो उस करैक्टर ने मुझे कॉमिक्स की तरपु ऐसा मोड़ा कि आज तक मैं उस मोह से बाहर नहीं निकल पाया हुं। पिंकी , चाचा चौधरी, अंगारा इत्यादि की कॉमिक्स भी मैं समय समय पर पढ़ लेता था।
हमने तौसी गोजो की बात तो कर ली अब मैं आपको बताता हुं उस जुनून की जिसने मुझे आज तक उस बचपन से बाहर नहीं निकलने देता । ये करैक्टर थे राज कॉमिक्स के - नागराज और ध्रुव 
जहां तक मुझे याद आ रहा है मैं नानी जी की घर गर्मी की छुट्टी पर गया हुआ था, शाम के समय मैंने अपने मामा जी को एक कॉमिक्स को पढ़ते हुए देखा अब इतनी कॉमिक्स पढ़ चूका था तो देखते ही पहचान गया ये क्या है और अपनी जगह पर खड़े ही खडे़ उछल पड़ा । मैं तुरन्त उनके पास गया और मैँने उनसे कहा कि मुझे भी पढ़ने को ये चाहिए । मामा जी ने कुछ देर बाद मुझे कॉमिक्स पढ़ने को दी। वो कॉमिक्स राज कॉमिक्स की सबसे बड़ी हीरो नागराज की थी जिसमें वो नागदंत की पीटाई कर रहा था। नागराज के हाथों से नाग निकते थे उस समय नागराज के पार आज की तरह शक्तियां नहीं थी पर वो शक्तिशाली था उसे कोई काट नहीं सकता था कोई काटता तो तुरन्त गल जाता था उसके पास कालजयी के विष की शक्ति थी इत्यादि
थौडागा , नागराज का इंतकाम ,कोबराघाटी , नागराज और कालदूत इत्यादि कॉमिक्स मैंने उन दो महीने की छुट्टी में पढ़ी
इस दौरान मैंने केवल नागराज की ही नहीं बल्कि ध्रुव की भी कॉमिक्स पढ़ी - ध्रुव मेरा आज भी फेवरेट है क्यो ये नही जानता पर उसको बनाया ही ऐसा गया है कि कोई भी उसका दीवाना बन जाये । उसने प्रलय कॉमिक्स में नागराज को भी हरा दिया मुझे तो मजा ही आ गया था । ध्रुव की दो या तीन ही कॉमिक्स उस समय पढ़ने को मिली पर उन कॉमिक्स में मैंने देखा कि एक नीली पीली ड्रेस पहने एक साधारण सा लड़का अपनी मोटरसाईकिल के साथ सड़कों पर घूमता और अपने दिमाग  और पशु पक्षियों के सहारे - महामानव और किरीगी जैसे इतने शक्तिशाली विलेन को धुल चटा रहा था। वो अलग था सबसे जुदा बिना शाक्तियों वाला शाक्तिशाली हीरो।
फिर  मैं और जितेन्द्र ने किराये पर लाई कई कॉमिक्स पढ़ी और कई सारी वापस ही नहीं की हीहीहीही । अब हम केवल नागराज और ध्रुव की ही कॉमिक्स पढ़ते थे जब इनकी कोई कॉमिक्स नहीं मिलती तो हम परमाणु और एंथोनी  , तिरंगा और मेरे दूसरे फेवरिट योद्धा की कॉमिक्स भी पढ़ लेते । मेरी आज तक की फेवरिट सीरीज नागराज और ध्रुव की ड्रैकुला की लड़ाई वाली सीरीज है नागराज का मानस रूप गजब था इसी बीच ध्रुव को भी श्वेता ने नये गैजेट देकर उसको अपग्रेड कर दिया था। हम हर साल नानी जी के घर जाते और पूरे साल का इकट्ठा किया पेपर लोहा इत्यादि बेचकर उनसे मिले रूपये की कॉमिक्स पढ़ते काफी अच्छे थे वो दिन । कोलाहल कॉमिक्स के बाद मेरा कॉमिक्स कनेक्शन टूट गया , मैंने इस बीच कुछ कॉमिक्स पीडीएफ वर्जन में किसी से खरीद रखी थी वो मैं समय समय पर पढ़ लेता था और फिर इस साल 2017 में राज कॉमिक्स का ऐप वर्जन रिलीज हुआ मुझे बहुत खुशी हुई । मैंने ऐप को डाउनलोड कर लिया और मुझे इस बात की हमेशा से खुशी होगी कि मैंने ऐप को पहले ही दिन डाउनलोड किया । राज कॉमिक्स वालो ने वाट्सऐप पर ग्रुप बनाया मैं उसमें जुड़ा वहां पर पायरेसी वालों की क्लास लग रही थी । मेरे पास भी कई कॉमिक्स थी मां कसम डर गया पर जो कॉमिक्स मेरे पास थी वो मैंने डिलीट नहीं की । मैं उस ग्रुप में शांत ही रहा । कुछ दिन बाद कबीर नाम का शक्स वाट्सऐप ग्रुप में आया और मेरे साथ कई लोगों को एफएमसी नामक ग्रुप में ज्वाइन कराया वो दिन है और आज का दिन है ग्रुप का सभ्यपन और कॉमिक्स सम्बन्धित बातों ने मेरे दिल को छू लिया यहां मुझे बलविन्दर भाई , हुकुम महेंद्र , मी , डेडपूल दीपक जी जैसे कॉमिक्स के ऐसे धुन्धर मिले की मुझे पता चला की मैं अकेला नहीं जिसे कॉमिक्स से प्रेम है यहां तो ऐसे भी लोग हैं जो मेरे से हजारों गुना ज्यादा कॉमिक्स के दीवाने और कला के धनी है । मुझे इस ग्रुप से कॉमिक्स सम्बन्धी हर करैक्टर सम्बन्धी कोई भी जानकारी चाहिए होती है तो मुझे यहां तुरन्त जानकारी मिल जाती है यहां पायरेसी नहीं होती बल्कि कॉमिक्स के श्रान का आदान प्रदान होता है वो भी सभ्य और अच्छे से अच्छे शब्दों में मैँ यहां हिन्दी में कम लिखता हुं किस लिए ये बताउं 
वो इसलिए क्योंकि मेरे से ज्यादा अच्छी हिन्दी बोलने वाले और लिखने वाले यहां है और मैं अपने खराब मात्राऔं को यहां लिखकर ग्रुप की शोभा नही खराब करना चाहता । कॉमिक्स पढ़ने और इस जुनून को आगे बढ़ने का जो कुछ भी कार्य मुझे भविष्य में करने का अवसर मिलेगा वो मैं सहर्ष करुंगा।

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बात कॉमिक्स प्रेम की
बॉबी कश्यप 
खटीमा, उत्तराखंड



कहते है बचपन हर दिल से बेगाना होता है और बचपन की याद कभी भुलाई नहीं जाती । कॉमिक्स प्रेम भी कुछ ऐसा ही है जो हम आज भी भूल नहीं सकते मित्रों तो अब बात आपने कॉमिक्स प्रेम की मैंने जो कॉमिक्स सबसे पहले पड़ी थी वो थी अंगारा अंतरिक्ष मे अंगारा की कहानी बहुत बढ़िया और प्रदीप साठे जी का बेमिसाल आर्टवर्क उनके बनाये हुए चित्र मुझे कॉमिक्स की और बराबर आकर्षित करते रहे  और आज भी अंगारा की कॉमिक्स मुझे सबसे जाएदा पसंद है । अंगारा के बाद जो केरेक्टर मुझे अच्छा लगता है तो वो मेरी फेवरेट राज कॉमिक्स से आता है ।
डोगा -डोगा जब से कॉमिक्स की दुनिया मैं आया है तब से आज तक मेरी पहली पसंद बना हुआ है कर्फ्यू ,ये है डोगा ,मैं हूँ डोगा अदरक चाचा और मुकाबला इन कॉमिक्स ने जो मनोरंजन दिया वो जादू आज भी बरकार है । कॉमिक्स प्रति दीवानगी कहूँ या प्यार मेरे लिये ये बहुत बड़ी बात है ऐसे कई मौके आये है जब पापा ने कॉमिक्स की वजह से खूब जमकर पिटाई भी की थी और कई बार मेरे जमा की गई कॉमिक्स को रद्दी मैं दे दी थी । उन सब बातों के बाद भी मैंने कॉमिक्स पड़ना नही छोड़ा और लगातार मैं कॉमिक्स इकट्ठा करता और पापा हर बार की इकट्ठी की हुई कॉमिक्स मेरे सामने वाली दुकान मैं दे देते थे । इन सब बातों से दुखी होकर एक बार मेने आपने पास जितनी भी कॉमिक्स थी सब आपने सामने वाली दुकान मैं दे दी , फिर जो हुआ वो काफी उलट था पापा और मम्मी ने वो सारी कॉमिक्स मुझे लाकर दी और ये कहा अब ये सब कॉमिक्स हमारी है और इन्हें किसी को मत देना । इसके बाद मैंने बहुत समय तक कॉमिक्स पड़ना छोड़ दिया मेरे इसके प्रति प्यार को देखकर आखिरकार मुझे इसकी अनुमति भी दी । 2007 मैं फिर से राज कॉमिक्स से जुड़ा और राज कॉमिक्स कुछ बेहतरीन कॉमिक्स पड़ने को मिली और तब से आज तक ये सफर आज भी जारी है और आगे भी जारी रहेगा .............

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जिंदा है जुनून 

विपुल वर्णवाल
सुईया बाजार,बांका
(बिहार)


Team FMC आप सबों की इतनी अच्छी कोशिश के बारे में पढ़ कर बहुत अच्छा लगा! सोचा अपने बचपन की कुछ कॉमिक्स से जुड़ी यादें सबों के साथ शेयर करूं, मेरी कहानी थोड़ी बड़ी हो सकती है क्यूँकी उस वक्त की बात याद कर कर के लिख रहा हूँ वो भी पहली बार, लिखते वक्त कुछ गलतियां हो जाए तो माफ कर दिजिएगा !
मैंने जब कॉमिक्स पढ़ना शुरू किया था तो मुझे बहुत दिलचस्पी हुई थी इसमें मेरे घर से कुछ ही दूरी पर 2 पुस्तक भंडार थी वहां बहुत सारी कॉमिक्स मिलती थी (भाड़े पर भी) मैं और मेरे दोस्त हमेशा जाते और भाड़े पर कुछ कॉमिक्स वहां से ले आते थे कभी कभी खरीद भी लेते थे बाद में सब एक दूसरे से बदल कर पढ़ लेते थे लेकिन समय के साथ बदलाव हुआ हमारे यहाँ कॉमिक्स आना बंद हो गया मैं बहुतों बार उस दुकान पर गया परंतु निराशा ही हाथ लगी कई बार कॉमिक्स के चक्कर में मां-पापा से डाँट भी सुनने को मिली मैंने भी अब कॉमिक्स की और ध्यान देना छोड़ दिया था कुछ बड़े होने पर मैं जब घर से बाहर निकला और अपने पड़ोसी राज्य झारखंड पहुँचा जिसे सभी महाकाल की नगरी बैद्यनाथ धाम (देवघर) के नाम से जानते हैं (सबों की जानकारी के लिए बता दूं मैं बिहार राज्य से हूं) वहां एक बुक स्टॉल पर कुछ कॉमिक्स देखने को मिली मुझे फिर से मेरे मन में कॉमिक्स की लालसा बढ़ी मैं उनके पास गया और बोला अंकल जी यही है या ओर भी है वो बोले ओर भी है मैंने कहा दिखाईए मुझे उनहोने बहुत सारी कॉमिक्स दिखाई मुझे मैंने पूछा कितनी की है यह वो बोले कुछ 20rs कुछ 30rs की मैंने इनमें से कुछ कॉमिक्स चुन ली जो की 220rs की हुई ओर 220rs पेमेंट कर दिया मुझे तो यह जानकर तब अजीब लगा जब दुकानदार ने मुझसे कहा बेटा तुम ले गए यह वरना मैं कुछ दिनों में सब रद्दी में बेच देता क्योंकि कोई भी लेने नहीं आता है अब मुझे यह फालतू लगने लगा था दुकान में! मैंने पूछा कितनी बची है आपके पास उन्होंने शायद 22 या 24 एेसा ही कहा था ! मैंने कहा अंकल जी मैं आपकी यह सारी कॉमिक्स ले जाऊंगा कुछ दिनों के बाद में फिर आऊंगा एेसा कह कर मैं वहां से चल दिया!
मेरी कॉमिक्स की ओर रूचि फिर से बढ़ गई मैंने सोचा अब इसकी व्यवस्था कहां से करूं की मेरे पास कॉमिक्स आए ओर मैं आसानी से पढ़ सकूं पता नहीं मेरे मन में एकदिन क्या ख्याल आया मैंने अपने 📱 मोबाईल के क्रोम ब्राउज़र में हिन्दी कॉमिक्स सर्च किया कुछ वेवसाईट मिली मैं वहां गया और जब देखा तो मानों एेसा लगा जैसे मुझे खजाना मिल गया अब रोज में अपना सारा MB सिर्फ कॉमिक्स डाउनलोड में खर्च करने लगा! मैंने राज कॉमिक्स की बहुत सारे कैरेक्टर से जुड़ी कॉमिक्स जमा की अब लग रहा था मैं राजा बन गया हूँ ! परंतु यह भी खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं रही मेरा मोबाईल हैंग कर गया ओर फारमेट करवाने की वजह से सारी की सारी कॉमिक्स उड़न छू हो गई परंतु यह सब होने से पहले मैंने अपनी सारी कॉमिक्स अपने एक दोस्त को दी थी उसके मोबाईल में परंतु वो पढ़ाई के लिए टाटा चला गया था मैंने उसे कॉल किया भाई तुम्हारे पास कॉमिक्स है ? उसने कहा, हां सब है परंतु क्यूँ पूछ रहा है तू ? मैंने कहा भाई मेरा सारा कलैक्शन डीलीट हो गया मुझे सब चाहिए उसने कहा ओके घर आ कर देता हूँ तब तसल्ली हुई की मुझे उसदिन !
उसके बाद मैंने सोशल मीडिया के दुनिया में कदम रखा (फेसबुक)जहां मुझे आप जैसे कॉमिक्स के दिवानों से मित्रता हुई सभी ही बहुत अच्छे लगे अब लग रहा था की कॉमिक्स आज भी सबों के दिलों में है !
सबसे पहले मेरी दोस्ती यहां Balbinder Singh जी से हुई उसके बाद बहुत सारे मित्रों से 🙂, यहां मैंने उन सबों को टैग किया है जो की किसी न किसी तरह से कॉमिक्स से जुड़े हुए हैं अगर कोई छूट गए हैं तो माफ कर दें
कॉमिक्स से जुड़ी छोटी छोटी बहुत सारी यादें हैं मेरी भी कभी फुरसत में वो भी बताऊंगा !
आपसबों को मेरी यह कहानी कैसी लगी बताए लिखने में गलतियां हुई हो तो वो भी बताएं
🙏 धन्यवाद 🙏
विपुल वर्णवाल
सुईया बाजार,बांका
(बिहार)
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#यादें

नवनीत सिंह
अम्बाला
हरियाणा




वर्ष था 1994 . .महीना था मार्च का.... पकड़म पकड़ाई खेल कर , थका हुआ मैं , अपनी चप्पल तुड़वा कर वापस घर की तरफ जा रहा था ..... इस खेल के दौरान मेरा पैर नाले में आ गया था इसी वजह से चप्पल टूट गई थी... इस डर से की घर वाले मारेंगे , शार्ट कट अपना कर घर के पिछले दरवाजे से घर मे घुसने का प्लान था.....टूटी चप्पल लेके मैं एक गली से गुजर रहा था कि अनायास ! वो पल . ..वो गजब का पल आ गया...मेरी नजर दुकान में रस्सी पर टंगी कुछ 'किताबों' पर गई.. वो अजीब सी किताबें . . . ' अलौकिक' सी . . जिनमे चित्र थे ..... मेरी आमतौर पर पढ़ीं " क , ख , ग " के कायदों की किताबों और "1,2,3" के गणित की किताबों से बिल्कुल भिन्न.... उनमें से कुछ में एक गोरिल्ला था , जो आदमीयों की तरह बोल रहा था , हाथ में बंदूक लिए कुछ लोगों से लड़ रहा रहा था . . . यह सब मेरे बालमन को भा गया . . .
घर पहुँचने पर मैं टूटी चप्पल की मार भी भूल चुका था . . .कुछ याद था तो सिर्फ वो किताब . . .6 रुपये की चित्रों वाली किताब . . . घर वालों ने मारा , कि पढ़ाई तो करने से गया , ये सब "मैगज़ीन" पढ़ेगा तू ?? ऊपरवाले की कसम , उस समय तो ' मैगज़ीन' शब्द का अर्थ भी समझ नहीं आया था ....बस मार खाई , रो धोकर चुप्पी साध ली... इस सारे वाकये के दौरान मेरी दादी जी ने कुछ नहीं कहा... सब के जाने के बाद उन्होंने 10 रुपये दिए , और बोली जा बेटा जा , खरीद ले अपनी "कोमा " . . .सब कुछ भूल भालकर मैं भागा भागा गया और दुकानदार से " पोस्टमॉर्टम " कॉमिक खरीदी . . .उस वक़्त उस कॉमिक का नाम तक पढ़ना नहीं आता था . .बाद में पता लगा कि वो ' डायमंड कॉमिक्स' के किरदार ' डायनामाइट ' की कॉमिक है . . .रात भर अक्षर जोड़ जोड़ कर पढ़ने की कोशिश की कि उस "किताब" में क्या कहने और बताने की कोशिश की गई है . . . फिर क्या था . . उसके बाद तो लत लग गई . . .
और अब तक जारी है . . . आगे भी रहेगी . . .
आप लोगों में से कोई अपना अनुभव बताना चाहे तो कृपा कर विस्तार से बताएं , कि उनका " कॉमिक" से पहला साक्षात्कार कब और कैसे हुआ . . .
ये मेरा पहला अनुभव था . . . .

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आकाश कुमार
पटना
बिहार

साल 1997 या 1998

तब मेरे पापा जी का ट्रांसफर बोकारो में हुआ था । ठीक से तब कक्षा की कोई किताब पढ़ने नही आती थी ।

छठ पर्व भी आ गया । उस साल माँ ने छठ पूजा शायद आर्थिक तंगी के कारण नही की थी । लेकिन एक जानकार के यहां शायद उन्होंने सुप दिया था ।

संध्या अर्ग के दिन हम वहां गए थे और रात में वही रुकना हुआ । वही एक कोने में मुझे , भईया और दीदी को कोने में रखी एक किताब दिखी ।

थोड़ी फटी हुई थी किताब । लेकिन हमारा ध्यान तो उस किताब के पन्ने पर दिख रहे पीले मानव पर था । हवा में उड़ता हुआ प्रतीत होता हुआ वह दृश्य जिसकी अब बस धुंधली यादे ही दिमाग मे है।

तीनो ने जैसे तैसे वो किताब पढ़नी सुरु कर दी । शायद दीदी थी जिन्हें कैसे पढ़ना है उन चित्रों को अच्छे से समझ मे आ गया था । तभी लाइट चली गयी ।

आज भी याद है मुझे की कैसे हम आंगन में किसी जलती ढिबरी की रोशनी में जैसे तैसे वो किताब पढ़ रहे थे।

वो किताब एक कॉमिक है ये कुछ वक्त के बाद पता चला । लेकिन कॉमिक से पहली मुलाकात छठ पूजा में ही हुई ।

वो पिला मानव परमाणु था और वो कॉमिक थी ब्लैक बेल्ट । किताब के बीच के कुछ पन्ने फ़टे हुए थे जिसके कारण हम ये नही समझ पाए थे कि उस हीरे में अब्सॉर्ब होने के बाद ब्लैक बेल्ट वापस कैसे आया ।

इस तरह से हम तीनों दीदी भइया और मेरी मुलाकात कॉमिक से एक साथ एक ही वक्त में हुई । वो भी छठ पूजा के शुभ अवसर पर छठी मईया की कृपा से ।

1997-98 से चलता कारवां अब भी चल रहा है और हमेशा चलता रहेगा ।

राज कॉमिक मेरे लिए मेरा सबसे करीबी दोस्त है । जिसका साथ मैं कभी छोड़ने वाला नही ।



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नमन झा






कॉमिक्स की तरफ मेरी शुरुआत मेरे 17 वें बर्थडे के दिन ! एक दिन मैं इंफिनिटी वॉर देखी थी बर्थडे की रात को ! मैंने बस यही सोचा कि यार ये इंडिया में कॉमिक्स क्यों नहीं बनती ! हमारे यहाँ ये सड़े गले सुपरहीरो मूवी ही क्यों बनती हैं ! कोई कॉमिक्स सुपरहीरो नहीं है क्या इंडिया में ! गूगल बाबा से पूछा कि कोई इंडियन सुपरहीरो है क्या महाराज ! पहला नाम जो सामने आया वो था नागराज ! उसके बाद पता चला कि राज कॉमिक्स का है ! फिर काफी रिसर्च के बाद राज कॉमिक्स के 3 करैक्टर का पता लगा, सुपर कमांडो ध्रुव, नागराज, डोगा! इन्हें पढ़ने से पहले काफी youtube videos और विकिपीडिया और blogs पढ़ के इनका बेसिक इन्फो लिया ! पता चला जिनका (राज कॉमिक्स) एप्प भी है , वहां चार मीनार फ्री थी उसे ही पढ़ा मैंने ! वो ही पहली कॉमिक्स थी ! फिर ऐसे ही फ्री और कुछ रैंडम स्टोरीज पढ़ी ! ज्यादातर ध्रुव की ही थी ! मजा आया पर वैसा कुछ फील नहीं हुआ जैसा मैं चाहता था ! फिर आया जनवरी-फरवरी ! बोर्ड एग्जाम सर पर थे ! साल भर का पढ़ा रिवाइस करना था ! मेरी एक कमजोरी है ! मुझसे रटा नहीं जाता ! फ़रवरी में 2-5 तारीख के बीच मैं सब दोबारा रिवाइस करने के बाद सैम्पल पेपर में सिर्फ 50-60% ही सॉल्व हो रही थी ! फिजिक्स औए केमिस्ट्री नहीं हो रहा था ! 10th में 9.8CGPA था तो 90% का प्रेशर अलग और साइंस में इन्ट्रेस्ट कभी नहीं था तो याद करना और कठिन ! धीरे-धीरे डिप्रेशन में चला गया ! लगभग फिर एक दिन born in blood और निर्मूलक सीरीज खरीद लि पढ़ने के लिए ! सोचा था कि ये एग्जाम नहीं हो पायेगा , इनको पढ़ लेता हूँ ! शायद मैंने कुछ उल्टा सीधा करने की प्लानिंग कर लि थी! बस इसे लास्ट कॉमिक्स सीरीज की तरह पढ़ रहा था ! but इन दोनों स्टोरीज को पढ़ने के बाद मेरी सब पर्सनैलिटी औए सोच सब बदल गई ! मैंने सोचा कि अगर ऐसी दिक्कतों से उभर के कूड़े के ढेर से कोई सुपरहीरोनिकल सकता है तो मैं एक एग्जाम तो पास कर ही सकता हूँ ! आर्ट्स ले लूँगा कॉलेज में ! upsc ही तो करना है ! उसके बाद जी जान लगा के मेहनत की ! एग्जाम 70% से क्लियर हुआ और बिना डरे घर वालों को बोल दिया कि आर्ट्स लेना है ! शुरू में थोड़ा कन्फ्यूजन था पर सब को समझाने के बाद सबने सपोर्ट किया !
इन शोर्ट, अगर डोगा की वो सीरीज नहीं होती तो शायद मैं ये सब टाइप भी कर रहा होता या नहीं, मुझे नहीं पता ! इसलिए डोगा और RC मेरे दिल के इतने करीब है!



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धीरज दास
जनकपुर रोड़
बिहार




सबसे पहले एक लाइन ने मेरी जिंदगी बदली। 1998 में शब्द मात्रा जोड़ जोड़ कर पढ़ता था तब नर्सरी में था। उस वक़्त की हिंदी किताब में वो लाइन पढ़ी "किताबें सबसे अच्छी दोस्त होती है"... इसके बाद जो भी किताबें मिली पढ़ने की कोशिश करता। शुरुआत में चंपक ,बालहंस , नन्हे सम्राट जैसी बाल पत्रिका हाथ लगी फिर सन 2000 में एक कॉमिक्स हाथ आयी, आगे पीछे से पंद्रह पंद्रह पन्ने फटे हुए... एक साढ़े चार सौ किलो का रोबोट जिसका दिमाग इंसानों का था वो जंगल में भेड़िया नाम के अनोखे इंसान और जेन के साथ जंगल से गुजर रहा था। भेड़िया और स्टील के मन के अंतर्द्वंद्व एक जगह दिखाए गए थे, वे दोनों आधे इंसान थे, और कॉमिक्स भी.. मेरी जिंदगी की पहली कॉमिक्स।। इसके बाद राज कॉमिक्स को सबपे तरजीह देना शुरू कर दिया, 2001 से 2011 तक ये जुनून अपने चरम पर था जब 26 km दूर मुख्य शहर साईकिल से चला जाता। अब भी पढ़ने का शौक जिंदा है और ताउम्र रहेगा।

 
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पुनीत कुमार
मेरठ
उत्तर प्रदेश




वर्ष याद नही .....क्योकि तब इतना छोटा था कि नही जानता था कि वर्ष ,महीनों और दिन क्या होते है।बड़ी बुआजी के बड़े लड़के तब हम लोगो के साथ ही रहते थे ।उनको कॉमिक्स का चस्का ठीक उसी तरह था जैसा कि उस दौर मे वाजिब था और संयुक्त परिवार में रहने के कारण उनको बहुत संघर्ष करना पड़ता था 'अध्ययन'करने में।
खैर, उनके देखा-देखी ही हमको भी 'तलब' लगी उन रंगों से लबरेज चित्रों को देखने की,क्योकि तब पढ़ाई में मुझे a, b, c भी नही आती थी।फिर धीरे धीरे अन्य पाठकगणों की भांति ही हमको भी 'जोड़- तोड़' करना आ गया।
और जो सबसे पहली कॉमिक्स मुझको याद है वो थी एक ऐसे हीरो की जो एक ब्लेड के दम पर एक बैंक को चोरी होने से बचाता है।बस वही से उसकी दीवानगी हमपे इस कदर हावी हुई कि आज भी उसके ही फैन है। अब आप सब मित्रगण समझ ही गये होंगे कि यहाँ बात हो रही है 'बुद्धिबल के महारथी' की।
अब कॉमिक्स का नाम आप लोग ही बता देना अनुमान लगा कर।हालाँकि एक और कद्दावर हीरो अपनी दमदार उपस्थिति लिए उसमे मौजूद था।
घर वालो का कॉमिक्स पढ़ने पर होने वाले अत्याचार के भी हम 'साक्षी' रहे है(हीहीही)। थप्पड़ से लेकर अपनी आँखों के सामने अपने पहले प्यार(शौक) को जलते हुए देखना भी अत्यंत कष्टप्रद था।(वो भी एक बड़ी संख्या मे)।
खैर कुछ भी हो अतीत की यादें हमेशा मीठी ही होती है जैसे के हम सबका 'बचपन'
ये हमारा 'सौभाग्य' ही है कि हमको बचपन मे 'मोबाइल' नही अपितु 'शब्द' और 'चित्र' मिले दोस्ती करने को।


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अभिषेक मिश्रा
कानपुर
उत्तर प्रदेश


रे बहुत से मित्र जो खुद कॉमिक्स प्रेमी है वो आये दिन पुछा करते है मेरे कॉमिक्स प्रेम के बारे में.मेरे कलेक्शन के बारे में.कई बार मुझे इग्नोर करना पड़ता है तो कई बार छोटे छोटे पार्ट में कहानी सुनकर शांत कर देता हु.आज यहाँ सबके कॉमिक्स से जुड़े निजी अनुभव देखे तो सोचा अपना पिटारा भी आज ही खोल लिया जाये.बहती गंगा में हाथ धोना ज्यादा सही रहता है.😁😁
बात तब की है ज़ब मैं "4 साल का परमाणु" बन चूका था और "बुद्धिपलट" की तरह बचपन से ही "शैतान" था.पूरी तरह तो नहीं लेकिन थोड़ा थोड़ा "काला अक्षर भैंस बराबर" पढ़ना और चित्र देख कर समझना आता था. मैं अपने बड़े भैया, दीदी, पापा, मम्मी, दादी, बुआ, चाचा और पिंकी के साथ रहता था.उस समय लाइट बहुत आती जाती थी और ज्यादातर हम अपनी खटिया या पलंग बाहर बिछा कर सोते थे.शाम का समय था वो, ज़ब पहली बार मैंने भैया को कोई "सुपरहीरो" ड्रा करते देखा."सुपर कमांडो ध्रुव" था जम्प करने की पोज़ करते हुए जो भाई बना रहे थे.नीली पीली ड्रेस में वो मुझे बहुत अच्छा लगा.फिर समझ आया कि कॉमिक्स नाम की कोई चीज आती है जिसमे ऐसे एक्शन करते "सुपरहीरो" होते है जो लोगो को दुष्ट लोगो से बचाते है.जानकारी के लिए बता दू के मेरे भैया कॉमिक्स के बहुत बड़े फैन रहे है और किराये पे कॉमिक्स लाने और पढ़ने की आदत उन्ही की वजह से लगी थी.जो शुरुआत ध्रुव से हुई थी वो भैया के लगातार कॉमिक्स लाने से और बढ़ती गयी.मेरे घर में लगभग सारे कॉमिक्स प्रेमी रहे है. दादी धार्मिक चित्रकथा, चाचा एक्शन कॉमिक्स, मम्मी राजा रानी वाली, दीदी और बुआ डायमंड वाली, पापा हॉरर और भैया सुपरहीरो की कॉमिक्स के दीवाने थे.इन सबके चक्कर में मुझे भी कॉमिक्स का ऐसा नशा चढ़ा कि जो आज तक ख़तम नहीं हुआ.आप यकीन नहीं करोगे लेकिन मेरे क्राइम स्कूल की हर कॉपी, भाई की कॉपी, दीदी की कॉपी, पापा के ऑफिस पेपर्स, मम्मी की मैगज़ीन और यहाँ तक की घर के अखबारों तक में मैं कॉमिक्स के नाम, विलन के नाम लिखा करता था.आर्ट बनाया करता था.क्या ऐड हो या क्या कॉमिक्स के अंदर का आर्ट, मेरी ड्राइंग क्लास की कम और इन सुपरविलेन और सुपरहीरो से भारी रहती थी.पागलपन का नशा यही नहीं ख़त्म हुआ.आगे चल के मैं कॉमिक्स के सेट, कौन सी कॉमिक्स में किस आर्टिस्ट, राइटर, एडिटर, कलरिस्ट का क्या योगदान है, कॉमिक्स सीरियल नंबर, कॉमिक्स ईयर और पता नहीं क्या क्या लिख के लम्बी चौड़ी "मोस्ट वांटेड" लिस्ट बनाने लगा.घर की ऐसी कोई कॉपी नहीं बची जहा मेरी कॉमिक्स से रिलेटेड आर्ट या कोई जानकारी ना लिखी हो.बहुत बार तो रुई की तरह धुनाई भी होती थी.पता चला पापा को बर्थ सर्टिफिकेट बना के देने है और पीछे "मा कसम", "योद्धा की चीख" लिखी हुई हो.पता चला भाई को होमवर्क जमा करना हो और कॉपी में आगे नगरस्सी पे झूलता "नागराज" बना हो.जैसे जैसे बड़ा होता गया मेरा जूनून और पागलपन जो कॉमिक्स को लेके था वो बढ़ता गया.मैंने देखा कि किराये पे कॉमिक्स लाने में समस्या ये है कि उसको वापस करना पड़ता है जो मुझे बिलकुल पसंद नहीं था तो मुझे कॉमिक्स कलेक्शन का पागलपन चढ़ गया.एक पागलपन ये भी था के मै अपनी खरीदी कॉमिक्स किसी को जल्दी हाथ नहीं लगाने देता था.इसके पीछे मंशा थी कि मेरी कॉमिक्स नयी जैसी बनी रहे, हाँ दुसरो की कॉमिक्स चुराने में, या मांगने में मुझे शर्म नहीं आती थी.होता ये था के इतनी मेहनत से खरीदी, या जुगाड़ करके लायी गयी कॉमिक्स ज़ब लोग मोड़ देते थे तो मुझे देख के हल्क वाला दौरा पड़ जाता था.फिर चाहे सामने मेरे से 4 गुना मेरा मामा का लड़का हो या क्लास का दादा, मैं डोगा की तरह दौड़ा कर मारता था.लोग कॉमिक्स छुपा के पढ़ते है, मैंने कॉमिक्स के लिए चोरी, डकैती, बड़ी बड़ी लड़ाई, सब कुछ किया है.सबसे मज़ा तब आता था ज़ब पापा क्लास में अच्छे नंबर लाने की "अनोखी शर्त" पर कॉमिक्स लाया करते थे.सच में उसी लालच के चक्कर में 70 परसेंट के नीचे कभी नंबर नहीं आये.फिर गर्मी की छुट्टिया हो तो मज़े से तखत पे बैठ कर या उल्टा लेट कर हलुवा खाते हुए कॉमिक्स पढ़ो, कितना मज़ा आता था बयान नहीं कर सकता.एक बुरी चीज इसमें ये भी है कि ये कॉमिक्स वाला प्यार इतना बढ़ गया था कि कॉमिक्स खरीदने के लिए घर से चोरी तक करनी पड़ी.उस बात का आज तक अफ़सोस है.हाँ पागलपन इतना किया है कि 16 की एक कॉमिक्स लेने के लिए 2 दिन 4km पैदल स्कूल जाता था.भूखे पेट रहता था और घर में किसी को पता भी नहीं चलने दिया.बड़े होने पे सबसे बड़ी दिक्कत यही है के दिमाग़ ज्यादा खुरापाती हो कर "मास्टरमाइंड" जाता है.शायद इसी का नतीजा था कि कॉमिक्स लेने के लिए डेली नयी नयी खुरपेंची किया करता था.ऐसे ही एक छोटा सा "हातिमताई" वाला किस्सा भी बताना चाहूंगा.एग्जाम शुरू होने वाले थे और उनकी फीस 200 जमा करनी थी.2 दिन की "डेडलाइन" थी मेरे पास."मेरे पापा" ने पैसे दिए और दिमाग़ में आया कि लास्ट डे जमा कर दूंगा.उन पैसो की शॉप वाले के पास "मैक्सिमम  सिक्योरिटी" जमा करके कॉमिक्स ले आया किराये पे पढ़ने के लिए.क्लास में फीस मांगी गयी तो अगले दिन का बहाना बना कर टाल दिया.अब मुसीबत ये थी के अगले दिन तक वो सारी कॉमिक्स पढ़ के लौटानी थी और मेरे पास किराये के भी पैसे नहीं थे कॉमिक्स वाले को देने के लिए.तो दिमाग़  ये लगाया के उस रात बिना सोये "मोमबत्ती" की रौशनी में कॉमिक्स चाट डाली और उसकी 2 कॉमिक्स भी दबा ली.अगले दिन कॉमिक्स शॉप पे वापस करने पहुँच गया.वापस 200 मांगे के अब और कॉमिक्स नहीं पढ़नी, आपके पास और नहीं है मेरी वाली.तो वो किराया जो 20 होता था वो काट कर 180 वापस करने लगा.अब क्या करता?मेरे पास तो एक भी पैसा नहीं था.मैंने उससे झूठ बोल दिया के किराया कल आपके बेटे को पहले ही दे दिया था और दो कॉमिक्स भी उसी समय पढ़ के वापस कर दी थी.उसको शक हुआ तो उसने पढ़ी हुई कॉमिक्स का नाम पुछा.मैंने उसी दिन उसकी कॉमिक्स रखने के सीरियल को समझ कर कुछ ऊपर के नाम याद कर लिए थे जो किसमत से वही निकले.उसको लगा मैं सच बोल रहा हु तो उसने पूरे पैसे वापस कर दिए.तब जाके मैंने फीस जमा करि और मेरी जान में जान वापस आयी जैसे बांकेलाल की आती है हर कॉमिक्स में.हालांकि बाद में मुझे बुरा लगा लेकिन तब तो मैं कॉमिक्स के "अमर प्रेम" में था इसलिए खुद को माफ़ कर दिया.😄😄
लोगो का समय के साथ प्यार बदलता जाता है लेकिन मेरे केस में ये बढ़ता गया.एक दो गर्लफ्रेंड भी बनाई जिन्होने कुछ समय बाद मेरे कॉमिक्स प्रेम का सबके सामने मज़ाक बनाया और "मजबूर" होकर उन्होंने हीरे जैसा अपना बॉयफ्रंड खो दिया.कॉलेज के दोस्तों ने जो खुद को स्टाइलिश समझते थे, थोड़ा इंसल्ट भी किया, टीचरों और घर वालो ने जम के कूटा, सबकी हंसी का पात्र भी बना लेकिन ये कॉमिक्स की "प्रेम ऋतू"  का "खेल ख़त्म" नहीं हुआ.वीडियो गेम बने, कम्प्यूटर गेम्स आये, जमाना बढ़ता गया लेकिन अपनी पहली पसंद हमेशा कॉमिक्स रही.आज काफ़ी उम्र हो चुकी है."ये शादी होकर रहेगी" वाली दहलीज पे खड़ा हु लेकिन आज भी दिल बचपन वाला कॉमिक्स प्रेमी है जिसने तय किया है कि शादी भी उसी से करेगा जिसके पास उसके जैसा कॉमिक्स प्रेम वाला दिल होगा.महादेव की कृपा से कल जो भी हो लेकिन "सुपर इंडियन" की तरह एक कसम मैंने भी खायी है कि 80 साल का बुड्ढा भी हो जाऊंगा तब भी कॉमिक्स का नशा ख़त्म नहीं होने दूंगा.
बाकि कहानियाँ बहुत सी है लेकिन ज्यादा लम्बा लिखा तो लोगो के प्रोफेसर कमल कांत की तरह "कोमा" में जाने के आसार है इसलिए आज इतना ही.बाक़ी फिर "काली दुनिया " होने के बाद.....🙏😎


17 comments:

  1. Give new Raj comics link pdf

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  2. Good bro....

    मुझे आज भी याद है मैंने सबसे पहली कामिक्स बांकेलाल और तिलिस्मदेव पढ़ी थी

    पर तब की कामिक्स स्टोरीज और आज की स्टोरीज में बहुत फर्क है

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  3. Very very thanks to FMC GROUP

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  4. धन्यवाद बलविंदर पाजी मेरी कहानी को यहां जोड़ने के लिए

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  6. Bhai jaan please bhokal comics upload kar do please

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  8. गर्मियों की छुट्टियों मे मासी के घर गया था 1998 था शायद वहाँ first time bakelala की dhartijakkad padhi उसके बाद जो जुनूँ peda हुआ वो अभी तक जिंदा है

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  9. अगर आप चाहे तो मै युटयुब पर विडियो बनाने मे आपकी मदद कर सकता हु| वो भी काफी अच्छी तरह की
    मेरा फोन न० 7398166718
    यही मेरा वाट्सअप न० भी है।
    धन्यवाद

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  11. Dear sir क्या अंतिम भाग "APPOCALAPTIC" नही आएगा क्या

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  12. This comment has been removed by the author.

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  14. apocalyptic comics kab tak aayegi???????

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  15. Bhai apocalyptic la do pleaseeeeeee

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  16. Mene sabse pahle gamraj ki comics Mera Bharat mahan padi uske bad to comics ki aisi lat lagi ki chirag ki roshni mai padta tha kyonki hamare yaha light 7 din din main aur 7din raat main aati thi din main Kam par Jana padta tha

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